चमोली। ज्योतिर्मठ नृसिंह मठांगन में भक्तों और ज्योतिषपीठ से जुड़े लोगों को संबोधित करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि आदि काल से ही चारों धामों के ग्रीष्मकालीन और शीतकालीन पूजा स्थल स्थापित हैं, लेकिन लंबे समय से कुछ माध्यमों से यह प्रचारित हुआ है कि ग्रीष्मकालीन पूजायें पूरी होने पर व कपाट बंद होने के बाद पूजा यात्रा समाप्त हो जाती है, जबकि ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि सदियों से ग्रीमष्मकालीन एवं शीतकालीन यात्रायें चलती आयी हैं। उन्होंने कहा कि शीतकाल में भक्त शीतकालीन गद्दी स्थलों में पहुंचकर अपने आराध्यों की पूजा करें इससे भी समान फल प्राप्त होता है। शीतकालीन यात्रा के तहत तीन शीतकालीन धामों के दर्शन व पूजा कर ज्योतिर्मठ पहुंचे शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती ने नृसिंह मंदिर में पूजा अर्चना कर अपनी शीतकालीन यात्रा का समापन किया। इस मौके पर वह भक्तों को संबोधित कर रहे थे। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानन्द ने कहा कि आदि शंकराचार्य ने भारत में चार धर्म राष्ट्रों की स्थापना की है जिसमें से उत्तर धर्मराष्ट्र की राजधानी ज्योतिर्मठ को बनाया था, यहां से पूर्व कालखंड में सनातन धर्म का प्रचार प्रसार होता रहा है। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य है कि ज्योतिषपीठ से उत्तर विश्व के सनातन धर्मावलंबियों की जितनी भी आकांक्षाएं हैं उनकी पूर्ती वे करें। इसलिए अब यहां धर्म राजधानी के रूप में कार्य आरंभ किया जायेगा। शंकराचार्य ने कहा कि उन्होंने नृसिंह भगवान के बदरी विग्रह का पूजन कर अपनी शीतकालीन यात्रा का समापन कर दिया है व वे देश दुनिया के सनातन धर्मावलंबियों से शीतकाल में नृसिंह बदरी एवं आराध्य शंकराचार्य की गद्दी के दर्शन और पूजन करने ज्योतिर्मठ आने का सभी को न्यौता देते हैं। उन्होंने कहा कि इससे जहां धर्म को मजबूती मिलेगी तो वहीं शीतकाल में तीर्थाटकों के आने से पहाड़ के व्यवसाय और रोजगार को नई उंचाई मिलेगी। अपनी शीतकालीन यात्रा की समाप्ति के बाद शंकराचार्य पांडुकेश्वर में भगवान बदरीविशाल के बड़े भाई उद्धव और खजांची कुबेर के दर्शन को भी गए।
शीतकालीन गद्दी स्थलों में पूजा करें भक्त: शंकराचार्य
RELATED ARTICLES

