अल्मोड़ा। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का मुख्य आधार माना जाने वाला सोबन सिंह जीना राजकीय आयुर्विज्ञान एवं शोध संस्थान अल्मोड़ा इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रहा है। डॉक्टरों की भारी कमी के कारण न केवल मरीजों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा, बल्कि चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। कॉलेज के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कुल 178 स्वीकृत पदों में से केवल 53 पद ही भरे हुए हैं। यानी यहां लगभग 70 प्रतिशत डॉक्टरों की कमी है। स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हृदय रोग विशेषज्ञ, न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, नेफ्रोलॉजिस्ट और यूरोलॉजिस्ट जैसे अहम विशेषज्ञ चिकित्सक पद सृजित नहीं होने के चलते संस्थान में उपलब्ध ही नहीं हैं। कार्डियोलॉजिस्ट न होने के चलते हृदय रोगियों को अक्सर हल्द्वानी रेफर करना पड़ता है और यह रोजमर्रा की समस्या बन चुकी है। न्यूरोसर्जन की अनुपस्थिति के कारण गंभीर मरीजों को समय पर उपचार न मिल पाने से उनके परिजनों को भारी परेशानी उठानी पड़ती है। कई बार उन्हें महंगी दरों पर एम्बुलेंस बुक कर मैदानी क्षेत्रों के अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।
रिक्त पदों की भर्ती प्रक्रिया भी इस संकट की गहराई को उजागर करती है। इंटरव्यू के दौरान बहुत कम संख्या में डॉक्टर ही सामने आते हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि पहाड़ी इलाकों में काम करना चुनौतीपूर्ण है। यहां न तो पर्याप्त सुविधाएं हैं और न ही करियर ग्रोथ के अवसर, जिसके चलते अधिकांश चिकित्सक मैदानी क्षेत्रों को प्राथमिकता देते हैं। फैकल्टी की कमी ने भी हालात को और जटिल बना दिया है। जहां न्यूनतम 90 फैकल्टी सदस्य होने चाहिए थे, वहां केवल 53 ही उपलब्ध हैं। ऐसे में मेडिकल कॉलेज की कार्यप्रणाली और शिक्षा व्यवस्था दोनों प्रभावित हो रही हैं। जब देशभर में स्वास्थ्य सेवाओं और चिकित्सा शिक्षा को सशक्त बनाने की बातें हो रही हैं, उस समय अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज की यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय है। बड़ा सवाल यह है कि सरकार कब इस ओर ठोस कदम उठाएगी, यहां सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों के पद सृजित करेगी और कब मरीजों को इलाज के लिए मैदानी क्षेत्रों की दौड़ से राहत मिलेगी।
अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज: डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा पहाड़ का सहारा
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