अल्मोड़ा। वनस्पति विज्ञान विभाग, एसएसजे परिसर द्वारा राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (डीएसटी), नई दिल्ली के सहयोग से शनिवार को “कंजर्वेशन ऑफ ट्रेडिशनल क्रॉप्स इन हिमालयन रीजन विद स्पेशल रेफरेंस टू सेरेल्स एंड मिलेट्स” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी में पारंपरिक फसलों और मोटे अनाजों के संरक्षण, उनके पोषण मूल्य, आर्थिक महत्व और बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य में उनकी भूमिका पर गहन विमर्श किया गया। कार्यक्रम में ऑनलाइन माध्यम से जुड़े मुख्य अतिथि प्रो. दुर्गेश पंत ने कहा कि झंगोरा, मडुवा जैसे मोटे अनाज इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर हैं और इनमें संपूर्ण पोषण तत्व मौजूद हैं। उन्होंने इन फसलों के संरक्षण, शोध व नवाचार की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि विश्वविद्यालय की ओर से प्राप्त संस्तुतियों को धरातल पर उतारा जाएगा। कुलपति सतपाल सिंह बिष्ट ने कहा कि पारंपरिक फसलों पर अस्तित्व का संकट मंडरा रहा है और बाजार उपलब्ध न होने से किसानों को इनसे लाभ नहीं मिल पा रहा। उन्होंने फसलों के उत्पादन के साथ-साथ उनकी प्रोसेसिंग और पैकेजिंग पर जोर देने की बात कही ताकि उन्हें व्यावसायिक रूप से मजबूत आधार मिल सके। सांख्यिकी अधिकारी अशोक कुमार ने खेती और ग्रामीण क्षेत्रों से हो रहे पलायन पर चिंता जताते हुए कहा कि शिक्षित युवाओं को खेती से जोड़ना समय की मांग है। उन्होंने मोटे अनाज की चिकित्सकीय उपयोगिता पर भी प्रकाश डाला। संगोष्ठी में तकनीकी सत्रों का भी आयोजन हुआ, जिनमें डॉ. डी.सी. जोशी, डॉ. पंकज तिवारी, डॉ. श्रीकर पंत, डॉ. नेहा पांडे सहित विभिन्न विशेषज्ञों ने मिलेट्स, पोषण, जलवायु-अनुकूल खेती, राइजोस्फीयर अध्ययन, खाद्य सुरक्षा, सतत विकास, समुदाय-आधारित वनीकरण जैसे विषयों पर विचार प्रस्तुत किए। संगोष्ठी के संचालन में नेहा जोशी और दीक्षा खुल्बे ने भूमिका निभाई। आयोजन में डॉ. सुभाष चंद्रा, डॉ. मजूलता उपाध्याय, डॉ. रवींद्र कुमार, रवींद्रनाथ पाठक, प्रमोद भट्ट, के.के. कपकोटी, डॉ. जोया साह, डॉ. भावना पांडे, प्रो. शेखर चंद्र जोशी, डॉ. दीपक, डॉ. नंदन सिंह बिष्ट, प्रो. इला साह सहित अनेक शिक्षक, शोधार्थी, छात्र और क्षेत्रीय वैज्ञानिकों की सहभागिता रही।
हिमालयी पारंपरिक फसलों के संरक्षण पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित
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