देहरादून। उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग डॉ.गीता खन्ना ने विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को गीता के श्लोक पढ़ाने को लेकर उत्पन्न विवाद को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि गीता के श्लोक केवल धार्मिक वाचन नहीं हैं, बल्कि वे जीवन-दर्शन हैं। यह जीवन कौशल सिखाने का प्रभावशाली माध्यम है, जो बच्चों में आत्मविवेक, आत्मनियंत्रण और नैतिक मूल्यों का विकास करता है। इसे किसी एक धर्म से जोड़ना या इसका विरोध करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि हम आज भी उसी शिक्षा सोच के प्रभाव में हैं, जिसने हमारी संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था को खंडित कर हमारी जड़ों को काट दिया। इसका परिणाम यह है कि हमारे बच्चे डिप्रेशन, एंजायटी, नशे की लत और साइबर अपराध जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। जबकि हम एक बार फिर अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़कर गीता के माध्यम से बच्चों को सही जीवन-दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। इसे धार्मिक कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। यूरोप, अमेरिका और अन्य कई देश ने गीता को जीवन कौशल और मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रम में शामिल किया है।
विद्यालयों में गीता के विरोध पर बाल आयोग चिंतित
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