Tuesday, October 22, 2024
Homeअन्यमाता के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की गई

माता के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की गई


विकासनगर।  शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा-अर्चना की गई। पछुवादून के मंदिरों में दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। घरों और मंदिरों में दुर्गा सप्शती के पांचवें अध्याय का पाठ किया गया। व्रतियों ने पूजा अर्चना कर माता को भेंट समर्पित की। मंदिरों में देर शाम तक भजन कीर्तन के कार्यक्रम भी चले। प्राचीन शिव मंदिर बाड़वाला के पुजारी सुनील पैन्यूली ने श्रद्धालुओं को बताया कि शिव और पार्वती के दूसरे और षडानन (छह मुख वाले) पुत्र कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है। स्कंद की माता होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। माना जाता है कि मां दुर्गा का यह रूप अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला और उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाने वाला है। मां के इस रूप की चार भुजाएं हैं और इन्होंने अपनी दाएं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात कार्तिकेय को पकड़ा हुआ है और इसी तरफ की निचली भुजा के हाथ में कमल का फूल है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा वरदमुद्रा में स्थित है और नीचे दूसरी भुजा में श्वेत कमल का फूल है। सिंह इनका वाहन है। यह सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए इनके चारों ओर सूर्य के समान अलौकिक तेजोमय मंडल दिखाई देता है। डूंगाखेत निवासी पंडित जयप्रकाश नौटियाल ने बताया कि सर्वदा कमल के आसन पर स्थित रहने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। ऐसा विश्वास है कि इनकी कृपा से साधक के मन और मस्तिष्क में अपूर्व ज्ञान की उत्पत्ति होती है। माना जाता है कि कविकुल गुरु कालिदास ने इनकी ही कृपा से अस्ति, कश्चित् और वाग्विशेष इन तीन शब्दों के माध्यम से कुमार संभव, मेघदूत और रघुवंश अपनी इन तीन कालजयी कृतियों की रचना की थी। पंडित रतूड़ी ने बताया कि मन की एकाग्रता के लिए भी इन देवी की कृपा विशेषरूप से फलदायी है। इनकी पूजा करने से भगवान कार्तिकेय, जो पुत्ररूप में इनकी गोद में विराजमान हैं, की भी पूजा स्वभाविक रूप से हो जाती है।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments