Friday, December 19, 2025
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राष्ट्रीय फॉरेंसिक सम्मेलन आईसीएफएमटी मिडकॉन-2025 का हुआ समापन


अल्मोड़ा। सोबन सिंह जीना गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च अल्मोड़ा द्वारा 8 और 9 जून को आयोजित इंडियन कांग्रेस ऑफ फॉरेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सिकोलॉजी के मिड-टर्म राष्ट्रीय सम्मेलन आईसीएफएमटी मिडकॉन-2025 का भव्य और सफल आयोजन संपन्न हुआ। देशभर से आए विशेषज्ञों, शिक्षकों और छात्रों की सहभागिता इस आयोजन को उल्लेखनीय बना गई। सम्मेलन के द्वितीय दिवस का उद्घाटन मुख्य अतिथि प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट, कुलपति एसएसजे विवि और संस्थान के प्राचार्य एवं डीन डॉ. सी.पी. भैसोड़ा द्वारा किया गया। मुख्य अतिथि प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने न्याय प्रणाली में फॉरेंसिक मेडिसिन की बढ़ती भूमिका पर जोर देते हुए ऐसे शैक्षणिक मंचों को विद्यार्थियों के करियर निर्माण के लिए अत्यंत आवश्यक बताया। यह दो दिवसीय सम्मेलन देश के विभिन्न राज्यों से आए 157 से अधिक प्रतिनिधियों की सहभागिता का साक्षी बना। वैज्ञानिक सत्रों में 75 मौखिक, 15 पोस्टर प्रस्तुतियाँ और 22 प्रमुख राष्ट्रीय विशेषज्ञों के व्याख्यान आयोजित किए गए। सम्मेलन के दौरान विविध विषयों पर गहन चर्चाएं, इंटरएक्टिव सत्र और कार्यशालाएं आयोजित की गईं, जिनमें छात्रों और शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। प्रमुख सत्रों में डॉ. नीरज कुमार द्वारा ‘वैश्विक मृत्यु जांच प्रणाली: भारत की स्थिति और आवश्यक सुधार’ विषय पर व्याख्यान दिया गया, जिसमें भारत की मौजूदा प्रणाली की तुलना अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से की गई। डॉ. ईश्वर तायल ने ‘पीसीपीएनडीटी एक्ट’ के कानूनी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. उर्मिला पलड़िया ने ‘एनेस्थीसिया के दौरान मृत्यु’ के चिकित्सा-कानूनी आयामों पर व्याख्यान दिया, जबकि डॉ. वीना तेजन ने ‘जानबूझकर आत्म-क्षति’ के नैदानिक और विधिक प्रबंधन को रेखांकित किया। डॉ. दलबीर सिंह और डॉ. प्रीत इंदर सिंह ने ‘आयु निर्धारण’ पर वैज्ञानिक और विधिक दृष्टिकोण साझा किया। ‘सरोगेसी: हालिया प्रगति’ विषय पर सत्र में डॉ. अशोक चनाना, डॉ. शैलेन्द्र सिंह और डॉ. डीसी पुनेरा ने सहभागिता की, जिसमें सरोगेसी से जुड़ी समकालीन कानूनी एवं नैतिक चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया। सम्मेलन के समापन सत्र में एनआईसी हरियाणा के साइंटिस्ट-एफ राहुल जैन ने ‘नए कानून और डिजिटल मेडिकल लीगल इकोसिस्टम’ विषय पर प्रस्तुति दी, जिसमें तकनीक और राष्ट्रीय डाटाबेस के माध्यम से न्याय प्रणाली में आ रहे बदलावों की रूपरेखा प्रस्तुत की गई। आयोजन समिति ने सभी वक्ताओं, प्रतिभागियों और स्वयंसेवकों के सहयोग के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि यह सम्मेलन न केवल फॉरेंसिक चिकित्सा के शैक्षणिक स्तर को समृद्ध करता है, बल्कि इसे न्याय व्यवस्था की बदलती जरूरतों के अनुरूप विकसित करने की दिशा में भी एक सार्थक पहल है।

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