उत्‍तराखंड में शिक्षकों की तबादला नीति बनाने की कसरत तेज, गुजरात की तर्ज पर राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों की व्यवस्था सुधारने पर सहमति

Manthan India
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उत्तराखंड की नजर अन्य राज्यों की बेस्ट प्रेक्टिसेज पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह मंत्र दिया है कि राज्य एक-दूसरे की बेस्ट प्रेक्टिसेज से सीखें और लाभ उठाएं। इस मंत्र के साथ सरकार कुछ आगे बढ़ी तो फिर पीछे ठिठकने की नौबत आ गई। चुनावी अखाड़े में यही भारी पड़ रहा है। इन्हीं उपलब्धियों को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे को निशाने पर ले रहे हैं।

इसका तोड़ विद्यालयी शिक्षा मंत्री डा धन सिंह रावत ने ढूंढ निकाला। प्रदेश में शिक्षकों के तबादलों को लेकर भारी दबाव रहता है। सत्तापक्ष को अपने भीतर से पडऩे वाले दबाव से निपटना मुश्किल हो जाता है। तय किया गया कि शिक्षकों की तबादला नीति हिमाचल और हरियाणा की तर्ज पर बनाई जाएगी। इसकी कसरत तेज हो चुकी है। राजीव गांधी नवोदय विद्यालयों की व्यवस्था सुधारने को गुजरात की तर्ज पर आगे बढऩे पर सहमति बनी। संतोष यह है कि तीनों राज्य भाजपा शासित हैं।

प्रवेश एवं शुल्क नियामक समिति नया अध्यक्ष मिलने के बाद से सक्रिय हुई तो निजी शिक्षण संस्थाओं में बेचैनी दिखने लगी है। समिति के अध्यक्ष पद पर हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की नियुक्ति बीते फरवरी महीने में हो चुकी है। समिति अध्यक्ष न्यायमूर्ति महबूब अली एक बार समिति की बैठक भी ले चुके हैं। सभी निजी और व्यवसायिक शिक्षण संस्थाओं का शुल्क निर्धारण किया जाना है। यह काम पिछले तकरीबन तीन साल से ठप है। समिति सक्रिय नहीं होने का अभी तक यह लाभ हुआ है कि निजी शिक्षण संस्थाओं ने विभिन्न पाठ्यक्रमों के मनमुताबिक शुल्क तय किए। अब उन्हें निर्धारित शुल्क के बारे में तथ्यों के साथ पक्ष समिति के सामने रखना है। स्टाफ की तैनाती, लाइब्रेरी, लैबोरेट्री समेत तमाम आवश्यक संसाधन के बारे में स्पष्टीकरण देना है। ब्योरा संतोषजनक नहीं हुआ तो शुल्क घट भी सकता है और पाठ्यक्रमों की वास्तविकता सामने आ सकती है। डर यही है।

पुरानी पेंशन को लेकर 2005 में नियुक्त हुए शिक्षकों ने बड़ी लड़ाई जीत ली। सरकार ने आदेश जारी कर एक अक्टूबर, 2005 के बाद प्रदेश में नई पेंशन योजना लागू की थी। एक अक्टूबर से पहले नियुक्ति पाने वाले सैकड़ों शिक्षकों की मुश्किलें उस समय कोटद्वार उपचुनाव की आचार संहिता ने बढ़ा दी। चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण शासनादेश जारी होने से पहले वे कार्यभार ग्रहण नहीं कर पाए। लंबे समय से अदालत और शिक्षा विभाग से लेकर शासन के चक्कर काट रहे इन शिक्षकों को अनसुना किया जाता रहा। आखिरकार सरकार का दिल पसीजा। शासनादेश जारी कर इन सभी शिक्षकों को पुरानी पेंशन योजना में शामिल किया गया। शिक्षकों के सफल रहे इस संघर्ष से उन शिक्षकों और कर्मचारियों में नई उम्मीद जन्मी है, जो पुरानी पेंशन बहाली के लिए लंबे समय से आंदोलनरत हैं। अब इस मामले में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बने हैं।
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