उत्तराखंड कोटद्वार क्षेत्र में हनुमान जी का प्रसिद्ध श्री सिद्धबली मंदिर स्थित है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की इच्छा पूरी होती है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां भंडारा कराने के लिए सालों का इंतजार करना पड़ता है।मान्यता है कि यहां आकर मनचाही इच्छा पूरी होने के बाद भक्त भंडारा करवाते हैं, लेकिन यहां होने वाले भंडारे के लिए वर्षों पहले बुकिंग करनी पड़ती है, यानी आज बुकिंग होगी तो कुछ वर्ष बाद ही भंडारा लगेगा।
सिद्धबली मंदिर में दर्शन के लिए हर दिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। उत्तराखंड ही नहीं विभिन्न राज्यों से श्रद्धालु यहां आकर मन्नत मांगते हैं। बिजनौर, मेरठ, दिल्ली व मुंबई के साथ ही कई अन्य क्षेत्रों से श्रद्धालु धाम पहुंचते हैं। पवित्र सिद्धबली धाम कोटद्वार नगर से करीब ढाई किमी दूर नजीबाबाद-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग पर है।भारतीय डाक विभाग की ओर से 2008 में मंदिर के नाम डाक टिकट भी जारी किया गया था। जनवरी, फरवरी, अक्टूबर, नवंबर व दिसंबर में महीने में सामान्यत: प्रतिदिन यहां भंडारे का आयोजन होता है। पूरे साल मंगलवार, शनिवार व रविवार को भंडारे का आयोजन होता है।
कलयुग में शिव का अवतार माने जाने वाले गुरू गोरखनाथ को यहां पर सिद्धि प्राप्त हुई थी। जिस कारण उन्हें सिद्धबाबा कहा जाता है।गोरख पुराण के अनुसार, गुरू गोरखनाथ के गुरू मछेंद्र नाथ हनुमान जी की आज्ञा से त्रिया राज्य की रानी मैनाकनी के साथ रह रहे थे। जब गुरू गोरखनाथ को इस बात का पता चला तो वे अपने गुरू को त्रिया राज्य के मुक्त कराने को चल पड़े।मान्यता है कि यहां पर बजरंग बली ने रूप बदल कर गुरू गोरखनाथ का मार्ग रोक लिया। जिसके बाद दोनों में युद्ध हुआ। दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को परास्त नहीं कर पाया, जिसके बाद बजरंग बली अपने वास्तविक रूप में आए और गुरू गोरखनाथ से वरदान मांगने को कहा। जिस पर गुरू गोरखनाथ ने हनुमान से यहां पर उनके प्रहरी के रूप में रहने की गुजारिश की। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर सिखों के गुरू गुरूनानक देव व एक मुस्लिम फकीर ने भी आराधना की थी।