
अजय बरसाती हत्याकांड की सीबीआई जांच में न्यायालय ने झोल ही झोल पाए हैं। सीबीआई ने सहमति के बावजूद मुख्य गवाह किशोरीलाल का ही पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं कराया। केवल आरोपी पुलिसकर्मियों की बातों को ही सच मानते हुए क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी। जबकि, आरोपियों में से किसी ने भी पॉलीग्राफ टेस्ट की सहमति नहीं दी थी।
दरअसल, इस मामले में अवैध हिरासत में मारपीट का आरोप लगा था। मजिस्ट्रेटी जांच में ही पुलिस की कहानी में झोल नजर आया था। पुलिस ने बताया था कि अजय को दून अस्पताल के बाहर से गिरफ्तार किया गया। जबकि, मजिस्ट्रेट ने अजय के मकान मालिक किशोरीलाल के बयान भी दर्ज किए। किशोरीलाल ने मजिस्ट्रेट को बताया था कि अजय को 12 सितंबर 2012 को नहीं बल्कि चार सितंबर 2012 को एसबीआई की शाखा से गिरफ्तार किया गया था। उस वक्त दोनों ड्रॉफ्ट बनवाने वहां गए थे।
सीबीआई ने जांच की तो अजय की पत्नी की मांग पर आरोपी पुलिसकर्मियों और किशोरीलाल के पॉलीग्राफ टेस्ट की अनुमति मांगी थी। इस पर किसी भी पुलिसकर्मी ने टेस्ट के लिए सहमति नहीं दी। जबकि, किशोरीलाल टेस्ट के लिए तैयार हो गए। मगर, सीबीआई के विवेचना अधिकारी ने उनका पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं कराया। बल्कि, फिजिकल असेसमेंट (शरीर के हावभाव) के आधार पर ही रिपोर्ट दे दी कि वह झूठ बोल रहे हैं। कोर्ट ने माना कि सीबीआई ने केवल आरोपी पुलिसकर्मियों के बयानों के आधार पर ही क्लोजर रिपोर्ट तैयार कर दी।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर नहीं ली राय