सिरसी- फाटा से बाबा के केदार धाम जाने-आने में अधिकतम 15 मिनट का समय लगता है। मगर, इस दौरान मौसम कई रंग बदलता है। उड़ान के वक्त चटख धूप, लैंडिंग के समय बर्फबारी में बदली हुई मिलती है। यहां पर हेली ऑपरेशन में सबसे बड़ी मुश्किल मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलावों की ही है।
मंगलवार को हुई घटना के बाद ‘हिन्दुस्तान’ ने केदारनाथ में 18 वर्ष से सेवाएं दे रहे पायलट कैप्टन पुरुषोत्तम कुमार छावड़ी से बात की। वे केदार घाटी में हेलीऑपरेशन की शुरुआत से ही जुड़े हैं। छावड़ी बताते हैं कि बाबा के धाम में सेवाएं देना हर पायलट के लिए बेहद आध्यात्मिक अनुभव होता है।
तकनीकी तौर पर 11 हजार फीट से अधिक की ऊंचाई पर बर्फ से लकदक पहाड़ियों के बीच हेली ऑपरेशन किसी भी सामान्य हेली ऑपरेशन जितना आम है। सैद्धांतिक तौर पर हेलीकॉप्टर ऑपरेशन ऐसे ही क्षेत्र में होते हैं, जहां सड़क से परिवहन संभव न हो। केदारनाथ हेली ऑपरेशन को इसका पल-पल बदलता मौसम चुनौतीपूर्ण बना देता है।
कई बार तो सिरसी, फाटा, गुप्तकाशी में उड़ान भरते समय तो मौसम बिल्कुल साफ होता है, लेकिन सात से आठ मिनट बाद लैंडिंग के दौरान मौसम बदला मिलता है। कई बार तो लैंडिंग संभव न होने पर खराब मौसम के बीच ही वापस भी आना पड़ता है। बारिश, बर्फबारी के बीच विजिबिलिटी बड़ी चुनौती होती है। अब तक यहां जो भी हादसे हुए हैं, उसमें खराब मौसम एक अहम वजह रहा है।
पांच गुना तक महंगा पड़ता है डबल इंजन हेलीकॉप्टर
छावड़ी के मुताबिक, दुनिया में यात्री हेलीकॉप्टर सिंगल इंजन ही चलते हैं। यह पूरी तरह सुरक्षित है। डबल इंजन हेली का संचालन पांच गुना तक महंगा पड़ता है, अधिक वजन होने के कारण पायलट सहित चार लोग ही जा सकते हैं। जबकि, सिंगल इंजन हेली वजन के अनुसार एक वक्त में पायलट संग सात लोगों को ही ले जा सकता है। हर उड़ान के बाद हेलीकॉप्टर की जांच भी होती है, तय उड़ान समय के आधार पर मेंटिनेंस पर डीजीसी की सख्त निगरानी होती है। छावड़ी के मुताबिक केदारघाटी संकरी है, यहां एक वक्त में छह उड़ान होती हंै।