कांग्रेस में हार पर रार! प्रदेश प्रभारी यादव पर भिड़े माहरा और प्रीतमदेहरादून। विशेष संवाददाता
प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव को लेकर शनिवार को प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह आमने सामने हो गए। प्रीतम द्वारा प्रभारी की निष्क्रियता पर उठाए सवालों को खारिज करते हुए करन ने प्रभारी के विरोध को व्यक्तिगत खुन्नस करार दिया है।
साथ प्रभारी का विरोध करने वालों को चश्मा बदलने की सलाह दी है। तो दूसरी तरफ, प्रीतम भी खुलकर सामने आ गए। उन्होंने कहा कि चश्मा पहनता हूं, इसलिए मुझे औरों से ज्यादा साफ नजर आता है।
मालूम हो कि प्रदेश प्रभारी को लेकर कांग्रेस में सीधा सीधा दो धड़े बन चुके हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह समेत कई नेता प्रभारी को पसंद नहीं करते।
जबकि माहरा प्रभारी के समर्थन में हैं। हरिद्वार पंचायत चुनाव के बाद प्रीतम ने प्रभारी पर खुलकर हमला बोला था। आरोप लगाया था कि प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने पर फोकस करने के बजाए वो गायब हैं।
माहरा ने राजीव भवन तो प्रीतम ने अपने यमुना कालोनी स्थित आवास पर मीडिया से बातचीत में एक दूसरे पर हमला बोला।
प्रभारी पर आरोप गलत हैं। जब आदमी का चश्मा ही खराब हो तो क्या कहा जा सकता है? विस चुनाव के बाद तीन बार प्रभारी ने बैठक की लेकिन प्रीतम जी उनमें आए ही नहीं। हरिद्वार पंचायत चुनाव को लेकर दिल्ली में बैठक में निमंत्रण देने के बावजूद नहीं आए। आपका प्रभारी से व्यक्तिगत नाराजगी हो सकती हैं।
लेकिन इस प्रकार प्रभारी को टारगेट करने से कार्यकर्ता का मनोबल टूटता है। इस वक्त कार्यकर्ता सरकार की विभिन्न्न मुद्दों पर संघर्ष कर रहा है, ऐसे में किसी शीर्ष नेता का बयान आ जाता है सारी प्रक्रिया प्रभावित होती है। मेरा निवेदन है कि शीर्ष नेता इन विषयों से बचें।
करन माहरा, प्रदेश अध्यक्ष-कांग्रेस
मैं चश्मा पहनता जरूर हैं लेकिन जो नहीं पहनते उनकी नजर कमजोर है। मेरा प्रभारी से कोई व्यक्तिगत विवाद नहीं है। लगातार लोग कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं। विस चुनाव हारने के बाद खानपुर और लक्सर में पार्टी प्रत्याशी कांग्रेस छोड़कर चले गए। हतोत्साहित कार्यकर्ता का मनोबल बढ़ाने की जरूरत है। जिन लोगों पर जिम्मेदारी है, वो इसे पूरी ईमानदारी से निभाएं। इस वक्त कांग्रेस में विषम परिस्थितियां पैदा हो चुकी है।इसे देखना होगा। कांग्रेस का आम कार्यकर्ता होने की वजह से मुझे जो ठीक लगा मैने कहा। यदि किसी को बुरा लगा तो उसके मर्ज की कोई दवा मेरे पास तो नहीं है। सार्वजनिक बयान न देने का फार्मूला केवल नेताओं पर ही नहीं, बल्कि प्रदेश अध्यक्ष पर भी लागू होता है।