आईआईपी की उपलब्धि : अब दुनियाभर में बायोजेट फ्यूल से उड़ान भरेंगे हवाई जहाज

Manthan India
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देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर हो रहे प्रयासों के तहत सीएसआईआर-आईआईपी (भारतीय पेट्रोलियम संस्थान) ने निजी विमानन कंपनियों टाटा कंपनीज, एयर विस्तारा, एयर इंडिया और एयर एशिया इंडिया के साथ महत्वपूर्ण करार किया है। इस करार के तहत निजी विमानन कंपनियां सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (एसएएफ) के उपयोग और इसे बढ़ावा देने के अभियान से जुड़ेंगी। यानी अब दुनियाभर में बायोजेट फ्यूल से हवाई जहाज उड़ान भर सकेंगे।

आईआईपी निदेशक डा. अंजन रे की मौजूदगी में गुरुवार को आईआईपी में टाटा एविएशन कंपनीज के सिद्धार्थ शर्मा, एयर विस्तारा से नियंत मारु, एयर इंडिया से कैम्पबेल विलसन, एयर एशिया इंडिया के सुनील भास्करन के साथ ये एमओयू साइन किया गया। आईआईपी निदेशक डा.अंजन रे ने बताया कि भारत ने कार्बन उत्सर्जन कम करने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में शामिल होते हुए सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल से देश में कार्बन उत्सर्जन को 65 फीसदी तक कम करने का लक्ष्य तय किया है। इससे पहले यह करार इंडिगो, स्पाइस जेट से भी किया जा चुका है। इस करार से देश में बायोजेट फ्यूल के व्यावसायिक उत्पादन का माहौल तैयार होगा, बायोजेट फ्यूल की डिमांड बढ़ेगी और पूर्ति के लिए देश में प्लांट लगेंगे।

भारतीय सेना पहले ही बायोजेट फ्यूल का इस्तेमाल कर रही है। बायोफ्यूल के व्यावसायिक उत्पादन के लिए मेंगलौर रिफाइनरी और पेट्रोकैमिकल से बात चल रही है। यह ओएनजीसी की सहयोगी कंपनियां हैं। इन प्लांट में रोजाना दस से 15 हजार लीटर बायोफ्यूल का उत्पादन किया जाएगा। आईआईपी मोहकमपुर (देहरादून) के निदेशक डा. अंजन रे ने बताया कि अभी बायोजेट फ्यूल सामान्य तेल से महंगा है। इसकी वजह कम उत्पादन है। लेकिन पर्यावरण को पहुंच रहे फायदे के आगे ये महंगा सौदा नहीं है। बायोफ्यूल की उपलब्धता प्लांट लगने पर निर्भर है। इस करार ने उस बाधा को दूर कर दिया है। उत्पादन बढ़ने से लागत में भी कमी आएगी और बायोजेट फ्यूल लगाने के लिए कंपनियों को प्रोत्साहन मिलेगा।

भविष्य का ईंधन है बायोफ्यूल
पर्यावरण के नजरिए से बायोफ्यूल को भविष्य का ईधन माना जा रहा है। इसलिए वर्ष 2027 से अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में बायोफ्यूल का इस्तेमाल अनिवार्य रूप से किया गया है।

ये भी जानें
आईआईपी अभी अपने परिसर में स्थित पायलट प्लांट में 600 से 700 लीटर प्रति माह उत्पादन कर रहा है। बायोफ्यूल से इंजन के माइलेज में एक प्रतिशत से अधिक का सुधार आया है। यानि माना जाए कि दिल्ली से मुबंई की दो घंटे की फ्लाइट पर बोइंग 320 पर औसतन तीन हजार लीटर फ्यूल प्रति घंटा खर्च होता है। ये खपत बायो फ्यूल के इस्तेमाल वाले इंजन में एक प्रतिशत तक कम आंकी गई है। देश में अभी साठ से सत्तर लाख टन प्रति वर्ष सामान्य एविएशन फ्यूल का उत्पादन होता है। जबकि हम बायोजेट फ्यूल की उपलब्धता सालाना एक लाख टन की बात कर रहे हैं। इसलिए यह फिलहाल कम किफायती है। पर्यावरण के नजरिए से इस तथ्य को नजरअंदाज किया जा सकता है।

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