विधानसभा बैकडोर से नौकरी पाने वाले लोगों पर आज कार्रवाई करते हुए उनकी नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया, लेकिन जिन लोगों ने इन्हें नियमों का उल्लंघन करते हुए नौकरियां दी थी, उन पर कब और क्या कार्रवाई होगी? विधानसभा की विवादित भर्तियों के निरस्त होने के बाद अब यह सवाल सभी की जुबां पर है।
विधानसभा में वर्ष 2016 से वर्ष 2021 तक की 250 भर्तियों को नियमविरुद्ध पाए जाने पर शुक्रवार को उन्हें निरस्त करने निर्णय किया गया है। लेकिन जिन लोगों ने ये भर्तियां की, उस पर कोई खुलासा नहीं किया गया। नियुक्तियां करने वाले सभी विधानसभा अध्यक्ष और उनके सभी अफसरों को संसदीय कार्यप्रणाली का जानकार माना जाता है। नौकरी पाने वाले को नियम-कायदों की जानकारी नहीं थी।
उन्हें जैसे ही बैकडोर दिखाई दिया वो वहां से विधानसभा में प्रवेश कर गए, लेकिन भर्तियां करने वाले तो कायदे-कानूनों के पूरे जानकार थे। आज जांच समिति की जिस रिपोर्ट के आधार पर भर्तियां निरस्त की गई हैं, उसमें साफ साफ लिखा है इन भर्तियों में न तो संविधान के समानता के अधिकार का पालन किया गया है। और, उत्तराखंड सरकार के वर्ष 2003 के कार्मिक विभाग के जीओ की भी अनदेखी की गई है। वर्ष 2016 में 150 लोगों की भर्ती की गई। उनके वेतन भत्तों पर खजाने से लाखों रुपये खर्च हुआ है।
नौकरी दिलाने वाला भी दोषी: अधिवक्ता
कानून के जानकारों का कहना है कि गलत तरीके से नौकरी पाने वाले के साथ ही नौकरी दिलाने वाला भी बराबर का दोषी होता है। उस पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। बार काउंसिल ऑफ उत्तराखंड के सदस्य राकेश गुप्ता ने कहा कि नौकरी से निकाले गए लोग हाईकोर्ट जाकर हटाए जाने के आदेश के खिलाफ अपील कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि नौकरी किसी को गलत तरीके से दी गई तो उसमें अनुचित तरीके से नौकरी पाने वाले की तरह नौकरी दिलाने वाला भी दोषी होता है। इसमें उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है। एडवोकेट पंकज क्षेत्री कहते हैं कि विस अध्यक्ष संविधान के अनुच्छेद 187 के तहत राज्यपाल की अनुमति से नियुक्तियां कर सकते हैं। लेकिन जो तथ्य जांच कमेटी ने सामने रखे हैं, वो काफी गंभीर है। कर्मचारी इस मुद्दे को हाईकोर्ट के समक्ष रख सकते हैं कि उन्हें अधूरी जानकारियां दी गईं।जब सरकार मान रही है कि नियुक्तियां गलत हुई हैं, तो इन गलत नियुक्तियों को करने वालों के खिलाफ भी सरकार को मुकदमा दर्ज करवाना चाहिए। नौकरी से हटाए गए अभ्यर्थियों को भी छूट नहीं दी जा सकती है। क्योंकि किसी भी अपराध के संबंध में कोई यह नहीं कह सकता कि, मुझे कानून की जानकारी नहीं थी इसलिए मुझे माफ किया जाए।