शंकराचार्य स्वरूपानंद की एक इच्छा थी, जो रह गई अधूरी!

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शंकराचार्य स्वरूपानंद की एक इच्छा थी, जो अधूरी रह गई है। शंकराचार्य जौलीग्रांट एयरपोर्ट का नाम शंकराचार्य के नाम पर रखवाना चाहते थे। जिस को लेकर कई बार सरकार से बातचीत भी हुई और उन्होंने पत्र भी दिए, लेकिन नाम बदलाव नहीं हो सका।

फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ थे स्वरूपानंद
स्वरूपानंद हमेशा फर्जी शंकराचार्यों के खिलाफ रहे हैं। 2010 के महाकुंभ में कुछ तथाकथित शंकराचार्य के स्नान को लेकर भी विवाद हो गया था। उस समय तीनों शंकराचार्य एक हो गए थे। जिस पर प्रशासन को झुकना पड़ा था और फर्जी शंकराचार्य को स्नान का समय नहीं दिया गया था।

हरिद्वार से लगातार जुड़े रहे शंकराचार्य स्वरूपानंद 
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती पहली बार 1950 के महाकुंभ में हरिद्वार आए थे। इसके बाद लगातार उनका आना-जाना रहा है। वर्ष 1989 में ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बनने के बाद लगातार वह हरिद्वार से जुड़े रहे। 2005 में उन्होंने कनखल में शंकराचार्य मठ आश्रम बनाया था। इससे पहले स्वरूपानंद सरस्वती भूमानंद आश्रम, जयराम आश्रम और मानव कल्याण आश्रम में आते थे।

1950 के बाद से 1962 के कुंभ में भी स्वरूपानंद सरस्वती हरिद्वार आए थे। 1981 में उन्हें द्वारिका पीठ के शंकराचार्य की उपाधि मिली थी। 1950 में उनका नाम स्वरूपानंद रखा गया था। भूमापीठाधीश्वर अच्युतानंद तीर्थ ने बताया कि शंकराचार्य बनने से पहले स्वरूपानंद सरस्वती आश्रम में आते रहे हैं। 1960, 1975, 1980 में भी वह आश्रम में आए। चेतन ज्योति आश्रम के अध्यक्ष ऋषिश्वरानंद ने बताया कि शंकराचार्य का सभी स्टॉफ उनके आश्रम में रुकता था।

स्वरूपानंद ने तैयार कराया था शाही स्नान का क्रम
महाकुंभ में होने वाले शाही स्नान का क्रम 1962 के महाकुंभ में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने तैयार कराया था। उनकी अध्यक्षता में हुए फैसले में शाही स्नान का क्रम तय किया गया था। जो आज तक निरंतर चला आ रहा है। उस समय स्वरूपानंद सरस्वती  दंडी स्वामी थे।  भारतीय प्राचीन विद्या सोसाइटी के डॉक्टर प्रतीक मिश्रपुरी ने बताया कि 1962 महाकुंभ में यह फैसला लिया गया था। कमेटी के अध्यक्ष स्वरूपानंद सरस्वती थे।

कुंभ में किया था शाही स्नान: ज्योतिष और द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने 14 अप्रैल 2021 में नीलधारा में शाही स्नान किया। इस दौरान उन्होंने कुछ समय के लिए प्रवचन भी किए थे। 2016 में पहला चातुर्मास हरिद्वार में: द्वारिका एवं ज्योतिर्मठ शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने 2016 में हरिद्वार में पहला चातुर्मास किया था। तब उनका 66वां चातुर्मास था। इस दौरान वह दो महीने हरिद्वार में ही रहे थे। चातुर्मास में उन्होंने अपने शिष्यों को ज्ञान भी दिया था।

केदरनाथ का जीर्णोद्धार का अभियान छेड़ा था
2013 की आपदा के बाद शंकराचार्य ने केदरनाथ और शंकराचार्य की समाधि जीर्णोद्धार का मुद्दा उठाया था। जिस पर सरकार ने निर्माण शुरू कराया था।

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