उत्तराखंड में भू -कानून के अध्ययन व परीक्षण के लिए गठित समिति ने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय – विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए अपनी 23 संस्तुतियां सरकार को दी हैं। खास बात यह है कि समिति ने पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के सभी भू कानून संशोधनों को पलटने की सिफारिश की है
उद्योग, पर्यटन, शिक्षण संस्थान के नाम पर साढ़े 12 एकड़ से भी अधिक भूमि राज्य में खरीद पर रोक लगाई जाए। भू कानून समिति ने इसे लेकर सख्त संस्तुति की है। साफ किया है कि साढ़े 12 एकड़ से अधिक भूमि खरीद की मंजूरी देने के शासन के अधिकार पर भी रोक लगाई जाए। किसी को भी उसकी तय जरूरत से अधिक जमीन खरीद का अधिकार न दिया जाए।
रिपोर्ट में साफ किया गया है कि मौजूदा समय में राज्य सरकार पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान समेत विभिन्न प्रसंस्करण, पर्यटन, कृषि के लिए साढ़े 12 एकड़ से ज्यादा भूमि दे रही है। आवेदक संस्था, फर्म, कम्पनी समेत किसी भी व्यक्ति को उसके आवेदन पर भूमि उपलब्ध कराई जाती है। समिति ने इस व्यवस्था को तत्काल समाप्त करने को कहा है।
इसके स्थान पर हिमाचल प्रदेश की तरह न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर जमीन देने पर जोर दिया है। साफ किया कि मौजूदा समय में सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी के उद्योगों को जमीन खरीद करने की मंजूरी देने का अधिकार डीएम को न दिया जाए। बल्कि हिमांचल प्रदेश की तरह ये मंजूरियां सिर्फ शासन स्तर से दी जाएं। वो भी सिर्फ न्यूनतम भूमि की आवश्यकता के आधार पर ही दी जाए।
साढ़े 12 एकड़ से अधिक भूमि खरीदा का नहीं है नियम
उत्तराखंड में साढ़े 12 एकड़ से अधिक भूमि कोई नहीं खरीद सकता। राज्य से बाहर का ही नहीं, बल्कि राज्य के भीतर का भी कोई व्यक्ति इससे अधिक भूमि नहीं खरीद सकता है। यदि किसी एक व्यक्ति के नाम पर इससे अधिक भूमि है, तो वो सीलिंग के दायरे में आ जाती है। ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किए जाने का सख्त प्रावधान है। सिर्फ राज्य सरकार से मंजूरी लेकर ही साढ़े 12 एकड़ से अधिक भूमि खरीदी जा सकती है।
समिति ने राज्य में सिडकुल की खाली पड़ी जमीनों को औद्योगिक कार्यों के लिए इस्तेमाल पर जोर दिया है। खाली प्लॉट और बंद पड़ी फैक्ट्रियों की जमीनों को प्राथमिकता के आधार पर इस्तेमाल में लाने की सिफारिश की है। ऐसे ही जमीनों को उद्योगों के लिए आवंटित किया जाए।
सरकारी जमीन कब्जाने, धार्मिक स्थल बनाने वालों पर हो सख्त कार्रवाई
समिति ने सरकारी जमीन कब्जाने, अवैध कब्जे वाली भूमि पर धार्मिक स्थल बनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। इसके लिए राज्य स्तर पर बड़ा अभियान चलाने पर जोर दिया है। साफ किया कि यदि धार्मिक इस्तेमाल को कोई जमीन खरीदी जाती है या कोई निर्माण किया जाता है, तो जिलाधिकारी तत्काल शासन को रिपोर्ट करें। शासन स्तर से उस पर निर्णय लिया जाए।
सभी हितधारकों से सुझाव लेकर गहन विचार विमर्श कर 80 पृष्ठ में तैयार की रिपोर्ट
समिति ने राज्य के हितबद्ध पक्षकारों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार – विमर्श कर लगभग 80 पृष्ठों में अपनी रिपोर्ट तैयार की है। इसके अलावा समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक दी गई भूमि क्रय की स्वीकृतियों का विवरण मांग कर उनका परीक्षण भी किया।
उत्तराखंडमें निवेश और रोजगार बढाने के साथ भूमि के दुरूपयोग को रोकने पर फोकस
समिति ने अपनी संस्तुतियों में ऐसे बिंदुओं को सम्मिलित किया है जिससे राज्य में विकास के लिए निवेश बढ़े और रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो। साथ ही भूमि का अनावश्यक दुरूपयोग रोकने की भी अनुशंसा की है। समिति ने वर्तमान में प्रदेश में प्रचलित उत्तराखंड (उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम, 1950) यथा संशोधित और यथा प्रवृत्त में जन भावनाओं के अनुरूप हिमाचल प्रदेश की तरह कतिपय प्रावधानों की संस्तुति की है।