राज्य आंदोलनकारियों के बाद अब राज्य की महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण पर खतरा मंडरा रहा है। न्यायालय ने उन शासनादेश को फिलहाल स्थगित कर दिया है, जिनके जरिये राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी क्षैतिज आरक्षण का लाभ मिल रहा है। 2003 में तत्कालीन एनडी तिवारी सरकार ने राज्य की महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 20 फीसदी क्षैतिज आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके बाद के वर्षों में इसे बढ़ाकर 30 फीसदी कर दिया गया। क्षैतिज आरक्षण देने के पीछे तत्कालीन सरकारों ने यही आधार बताया कि राज्य की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों, सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन का सबसे अधिक कष्ट राज्य की महिलाओं को उठाना पड़ता है। इन विषम हालातों के बीच सरकार ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण का संबल देने का प्रयास तो किया, लेकिन अधिनियम नहीं बनाया। यही वजह है कि सिर्फ शासनादेश से दिये गए इस आरक्षण के लाभ पर खतरा मंडरा रहा है।
ठीक वैसे ही जैसे राज्य आंदोलनकारियों के 10 फीसदी क्षैतिज आरक्षण के साथ हुआ। राज्य आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण के शासनादेश को भी अदालत ने रद्द कर दिया था। पूर्व में हरीश रावत सरकार को आंदोलनकारियों के क्षैतिज आरक्षण को बहाल करने के लिए विधेयक लाना पड़ा था, लेकिन वह राजभवन में जाकर ऐसा फंसा कि आज तक नहीं लौटा। अब राज्य की महिलाओं के क्षैतिज आरक्षण को बचाने के लिए अध्यादेश का कवच तैयार करने की चर्चाएं हैं। कार्मिक विभाग ने अध्यादेश का प्रस्ताव तैयार कर लिया है। परामर्श के लिए प्रस्ताव न्याय विभाग के पास है।