सीमित संसाधनों के दबाव में अपने खर्चों में कटौती कर रही प्रदेश सरकार के एक फैसले को लेकर सचिवालय कर्मचारियों में भारी नाराजगी है। कुछ दिन पूर्व मंत्रिमंडल ने फैसला लिया कि राजकीय सेवा में आने वाले सभी कर्मचारियों के केंद्र सरकार से अधिक वेतनमान नहीं दिया जाएगा। सरकार का यह दावा भी है कि यह मौजूदा सेवारत कर्मचारियों पर लागू नहीं होगा, लेकिन सचिवालय संघ आशंकित है कि सरकार के इस फैसले से सचिवालय कर्मियों के हित प्रभावित होंगे। इस मसले पर संघ और सरकार आमने-सामने आ गए हैं।
सरकार पर खर्च में कटौती करने का दबाव
प्रदेश सरकार पर खर्च में कटौती का भारी दबाव है। राज्य के पास आय के बेहद सीमित संसाधन हैं। जीएसटी मुआवजा बंद होने से राज्य को केंद्र से अब पांच हजार रुपये सालाना नहीं मिलेंगे। सरकार को इस घाटे की पूर्ति करने के लिए आय के साधन के बढ़ाने के साथ फिजूलखर्ची पर अंकुश लगाना पड़ रहा है। हाल ही मुख्यमंत्री ने मितव्ययिता को लेकर कुछ फैसले लिए। कैबिनेट का फैसला भी इसी मुहिम का हिस्सा है।
वेतन-पेंशन और ब्याज पर 63 प्रतिशत खर्च
राज्य की माली हालत बहुत अच्छी नहीं है। कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और ऋणों और ब्याज की अदायगी पर ही सरकार को 32 हजार करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च करनी पड़ रही है। जो कुल खर्च का 63.36 प्रतिशत है। 2020-21 के वास्तविक आंकड़ों के मुताबिक, सरकार ने कर्मचारियों के वेतन पर 13704 करोड़, पेंशन पर 6167 करोड़, ऋणों की अदायगी पर 8269 करोड़ और ब्याज की अदायगी पर 4773 करोड़ खर्च किए।