कोविड-19 से लड़ाई में सूरमा साबित हुए सफेद कोट वाले

Manthan India
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‘सफेद कोट में नायक’ 2022 की डॉक्टर्स डे की थीम है। यह सच है कि कोविड-19 से लड़ाई में सफेद कोट वाले सूरमा साबित हुए हैं, लेकिन टीस इस बात की भी है कि भारत में सफेद कोट के ये नायक रोल मॉडल या प्रेरणास्रोत बनने की दौड़ में अभी भी काफी पीछे छूटे हुए हैं।

एक अनुमान के अनुसार, भारत में 50 लाख लोग प्रतिवर्ष चिकित्सकीय लापरवाहियों की वजह से अपनी जान गंवा देते हैं। अमेरिका में यह आंकड़ा महज चार लाख है। प्रशिक्षण और सलूक की कमी को इसके लिए जिम्मेदार माना गया है। हालांकि, इस अवांछित मृत्युदर को घटाना सीधे-सीधे डॉक्टरों के हाथ में नहीं है। इसके लिए जरूरी बजट खर्च, प्रशिक्षण में विशेषज्ञता और उत्कृष्टता लाने की जरूरत होगी।

उस खाई को पाटने की जरूरत भी होगी जो 14 लाख डॉक्टरों की कमी से बनी है। हमारे देश में सात हजार लोगों पर एक डॉक्टर है। मौलिक तौर पर ऐसा माना जाता है कि चिकित्सक अपने व्यवहार या व्यवहार में बदलाव लाकर भी समाज की स्वास्थ्य रक्षा कर सकते हैं।

डॉक्टर  उपाधि असल में डॉक्टरों पर उधार है, कोई खालिस उपहार नहीं। डॉक्टर उपाधि को धारण करने वाले व्यक्तियों के आचार-व्यवहार को समाज में ऊंची नजर से देखे जाने का चलन रहा है। जाहिर है कि ऐसे व्यक्तियों का आचरण रोल मॉडल की तरह लिया जाता है।

 प्रतिष्ठा में किया इजाफा

ऊंची सामाजिक स्थिति के होने के कारण डॉक्टर से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वो धनलोलुप हो अथवा व्यसनों और भ्रष्टाचार में लिप्त हो। एक जुलाई को डॉक्टर्स डे के दिन असल में डॉक्टर्स नाइट होगी, जब दिनभर के थके-हारे डॉक्टर अपनी मेहनत का जश्न मनाएंगे। डॉक्टर्स के इन समारोहों में खूब प्रशस्ति वितरण भी होंगे ज्यादा जुड़ाव, मोलभाव, दबाव और प्रभाव के लिए।

वर्ष 2017 में आईएमए ने वैधानिक चेतावनी जारी कर डॉक्टरों से गैर पेशेवरों के साथ मद्यपान न करने की सलाह दी थी। जाहिर है कि शीर्ष संस्था को इस बात की चिंता थी कि डॉक्टरों का व्यसन करना उनके रोल मॉडल वाले रूप के अनुरूप नहीं है। हालांकि, डॉक्टरों में मौजूद मद्यपान, धूम्रपान की लत और उसके दुष्प्रभावों के प्रति सचेत करने के लिए शीर्ष निकाय ने अपने आप को असमर्थ ही पाया।

सफेद कोट के नायकों ने कोविड काल में थोड़ा-बहुत अपनी प्रतिष्ठा में इजाफा किया। जान जोखिम में डालकर, जनजागरूकता का भार अपने कंधों पर उठाकर। इस दौरान डॉक्टरों में व्यायाम, कम मद्यपान और धूम्रपान निषेध की रुचि भी दिखाई दी। हजारों डॉक्टरों ने अपनी जानें भी गंवाईं, लेकिन वो आनुपातिक रूप से उस मृत्युदर के सामने कहीं नहीं ठहरता, जो मद्यपान और धूम्रपान के चलते चिकित्सा कर्मियों में पाई जाती हैं।

सफेद कोट में नायिका
भारत के आठ मेडिकल कॉलेजों में हुई स्टडी के अनुसार, युवा चिकित्सकों में धूम्रपान का प्रतिशत 17.5 के बराबर है, जो कि सामान्य वर्ग के  युवाओं के 21.5 प्रतिशत से थोड़ा ही कम है। एमबीबीएस के आठ प्रतिशत और पीजी के 16.6 प्रतिशत डॉक्टर्स धूम्रपान करते पाए गए। एमबीबीएस के 16.6 और पीजी के 31.5 प्रतिशत डॉक्टर शराब सेवन में रत रहे।

भारत के ही एक अन्य अध्ययन के अनुसार (जिसमें 235 अलग-अलग प्रतिभागी शामिल रहे) केवल 18 प्रतिशत डॉक्टर ही शराब का सेवन नहीं करते पाए गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में 30 प्रतिशत डॉक्टर्स तंबाकू का सेवन करते हैं। बस केवल एक सुकून भरी बात है कि मर्यादा और परंपरा अथवा लैंगिग कारणों से व्यसनरति भारतीय महिला चिकित्सकों में अत्यंत कम है।

असल में 2022 की डॉक्टर्स डे की थीम ‘सफेद कोट में नायक’ की सही हकदार वही हैं। यह थीम इस तरह से भी पढ़ी जा सकती है… ‘सफेद कोट में नायिका’ ताकि पुरुष डॉक्टरों में चेतावनी और स्पर्धा का एहसास हो। वो भी जन स्वास्थ्य के रोल मॉडल बनने में अपनी ली हुई शपथ निभा सकें। मद्यपान और धूम्रपान से दूर रहें। डॉ. बिधान चंद्र राय की स्मृति में मनाए जाने वाले डॉक्टर्स डे के दिन क्या ही अच्छा होता की रात ना होती, रात होती भी तो दिन की तरह उजली, जब सारे मेडिकल छात्र और डॉक्टर मद्यपान-धूम्रपान से आजीवन दूर रहने का संकल्प लेते।

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