दरकते पहाड़ों के बीच ‘जन्नत’ की हकीकत, प्रधानमंत्री की तपस्थली गरुड़चट्टी भी सुरक्षित नहीं

Manthan India
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आपदा से तबाह हुए केदारनाथ को संवारने के लिए आठ वर्षों से काम तो चल रहा है, लेकिन यहां दरकते पहाड़ भविष्य के खतरे की ओर इशारा कर रहे हैं। केदारनाथ के नौ किलोमीटर क्षेत्र में भूस्खलन और भूधंसाव का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। स्थिति यह है कि आपदा के नौ वर्ष के बाद भी सुरक्षा कार्य तो दूर इसकी योजना तक नहीं बन पाई है।

केदारनाथ धाम पर्यावरणीय दृष्टि से भी अति संवेदनशील है। एवलांच जोन में होने के कारण यहां वनस्पतियां नाममात्र की हैं। पूरे साल में यह क्षेत्र लगभग पांच माह बर्फ से ढका रहता है। 16/17 जून 2013 की आपदा ने केदारनाथ धाम सहित आसपास के नौ किमी क्षेत्र को बहुत अधिक प्रभावित किया था, जिसके निशान आज भी यहां मौजूद हैं।

केदारनाथ से रामबाड़ा तक नौ किलोमटर क्षेत्र में मंदाकिनी नदी के दोनों तरफ भूस्खलन हो रहा है, जो प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। इस भूस्खलन से अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तपस्थली गरुड़चट्टी भी सुरक्षित नहीं है। यहां तक कि पैदल मार्ग पर बसे लिनंचोली, छानी कैंप, बेस कैंप के नीचे तेजी से भूधंसाव हो रहा है। यह किसी भी समय बड़े खतरे का कारण बन सकता है।

वहीं, केदारनाथ में भैरवनाथ मंदिर के ठीक नीचे की पहाड़ी पर जगह-जगह मोटी-मोटी दरारें नजर आ रही हैं। यहां भूधंसाव को रोकने के लिए कुछ वर्ष पूर्व लोहे के गार्डर लगाए गए थे, लेकिन यह नाकाफी हैं। मंदाकिनी नदी के दूसरी तरफ दुग्ध गंगा का स्पान भी बढ़ा है। यह किसी बड़े खतरे को न्योता दे सकता है। गढ़वाल विवि के पर्यावरण विज्ञान के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. आरसी शर्मा ने बताया कि केदारनाथ से गौरीकुंड तक मंदाकिनी नदी ढलान पर बहती है, जिससे तेज बहाव से मिट्टी का कटाव होता है। आपदा में मंदाकिनी नदी का जलस्तर कई मीटर बढ़ने से दोनों तरफ की पहाड़ियों से भारी कटाव हुआ।

 पड़ावों पर अस्थायी निर्माण पर जोर 
प्रो. शर्मा के अनुसार, केदारनाथ के नए पैदल मार्ग पर सुरक्षा की दृष्टि से अस्थायी प्री-फ्रैबिकेटेड निर्माण होना चाहिए। क्योंकि यह पूरा क्षेत्र बेहद संवेदनशील है। यहां जगह-जगह रिस रहा पानी और हिमखंड जोन किसी भी स्थिति में सुरक्षित नहीं हैं। वहीं, वाडिया संस्थान के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. डीपी डोभाल का कहना है कि हिमालय क्षेत्र में जलवायु, परिस्थितियों और पर्यावरण को ध्यान में रखकर काम होना चाहिए। केदारनाथ में पुनर्निर्माण कार्यों में सिमेंट और सरिये का इस्तेमाल कम से कम हो, इस तरह की योजना होनी चाहिए।

पुराने पैदल मार्ग किए जाएंगे पुनर्जीवित 
जिलाधिकारी मयूर दीक्षित ने बताया कि रामबाड़ा-केदारनाथ पुराने पैदल मार्ग को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। पूर्व में हुए सर्वेक्षण के बारे में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग से रिपोर्ट मांगी गई है। साथ ही विशेषज्ञों की मदद से जल्द ही पुराने पैदल मार्ग का दोबारा सर्वेक्षण कर निर्माण की रूपरेखा तैयार की जाएगी। रामबाड़ा से केदारनाथ तक सभी भूस्खलन व भूधंसाव जोन चिह्नित कर उचित निस्तारण के लिए भी वैज्ञानिकों की मदद ली जाएगी।

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